मच्छर का जीवन चक्र |Life cycle of mosquito in hindi|

मच्छरो कि विभिन्न प्रजातियां पायी जाती है, जिनमें काफ़ी भिन्नता पायी जाती है, मच्छर गंदे इकट्ठा हुए पानी में पनपता है, तथा यह जीवो में बीमारियों को फैलाने में एक वाहक के रूप मे कार्य करता है, इस आर्टिकल के माध्यम से मच्छर का जीवन चक्र तथा उससे संबधित तथ्यों जैसे उनके व्यवहार के बारे व मच्छरों को नियंत्रित कैसे किया जाये? इन सब के बारे में जानकारी प्राप्त होगा|

Contents

• मच्छरों के बारे मे सामान्य जानकारी :-

मच्छर (ऑर्डर डिप्टेरा,फैमिली कुलीसीडे) कीड़े (insect) प्रजाति का है, इसकी विभिन्न प्रजातियां पायी जाती है, मच्छर की प्रत्येक प्रजाति रोगजनक नहीं होते लेकिन कई ऐसे प्रजाति है, जो व्यक्ति पर गहरा नकारात्मक रूप से प्रभाव डालते है, व बहुत घातक होते है, मच्छरों को उनके पंखों व सिर के अगले भाग पर एक लंबे भेदक सूंड से पहचाना जा सकता हैं| इसी शुंड के माध्यम से यह अपने पोषक (host) से पोषण प्राप्त करते है, मच्छर का जीवनकाल भी अन्य कीड़ों कि भांति चार प्रावस्थाओं से होकर गुजरता है, मादा व नर मच्छर आकार में भिन्न होते है, व उनके पोषण भी अलग-अलग होते है|

• मच्छरों का पोषण :-

मादा मच्छरों में एक लंबी,पतली सूंड या मुखपत्र होता है, जो नर मच्छरों के समान होता है, लेकिन मादा मच्छरों के सूंड रक्त निकालने के लिए अधिक कुशल होते है| मादा मच्छर अपना पोषण पोषक (host) से प्राप्त करती है, यह अपने संभावित शिकार कि त्वचा की जांच करती है, व सूंड के माध्यम से त्वचा को भेदकर अपने लार को रक्त में प्रवेश कराती है| लार में विशेष रसायन होते हैं, जो रक्त को पतला करता हैं, और त्वचा को सुन्न कर देता है, जिससे रक्त को चूसना आसान हो जाता है| यही कारण है जिससे पीड़ित को थोड़ा देर बाद मच्छर काटने का एहसास होता है, लार के सुस्त प्रभाव भी है, जो बाद में मच्छर के काटने से खुजली होता हैं|

नर मच्छर अपने पोषण के लिये पेड़-पौधो व फलो के रस पर निर्भर रहते है, यह रक्त का सेवन नहीं करते है| मच्छरों की कुछ प्रजातियों में,निषेचित मादा सर्दियों के दौरान शीतनिद्रा (hibernate) करती है, जबकि ठंड का मौसम आते ही नर मर जाते हैं| शीतनिद्रा (hibernate) करते समय भोजन के बिना जीवित रहने के लिए मादाओं को अतिरिक्त शर्करा खाने की आवश्यकता होती है|

• मच्छर का जीवन चक्र :-

मच्छर अपने जीवनकाल के दौरान अनेक प्रावस्थाओ से होकर गुजरती है

मच्छर के जीवन काल के चार अवस्थाएं

अंडे लार्वा बनने के पश्चात वे तब तक बढ़ते है, जब तक वे प्यूपा में बदलने में सक्षम नहीं हो जाते,वयस्क मच्छर परिपक्व प्यूपा से निकलता है| यह पानी की सतह पर तैरता है|प्रजातियां,लिंग और मौसम की स्थिति के आधार पर,मच्छरों का जीवनकाल एक सप्ताह से लेकर कई महीनों तक रहता है, विभिन्न मच्छरों की प्रजातियाँ अलग-अलग आवासों में पाई जाती हैं, कुछ मच्छरों को “बाढ़ के पानी”का प्रजाति माना जाता है, जो अस्थायी जल में निवास व प्रजनन करते हैं, जबकि अन्य को “स्थायी जल” में निवास करने वाले मच्छर होते हैं|

• मच्छर के जीवनकाल के चरण :-

मच्छर अपने जीवन चक्र में चार चरणों से गुजरते हैं: अंडा,लार्वा,प्यूपा और वयस्क पहले तीन चरण अंडा, लार्वा,और प्यूपा काफी हद तक जलीय होते हैं|

1.मच्छर का जीवन चक्र का प्रथम अवस्था :- अण्ड (egg)

मादा मच्छर अपने जीवन काल के दौरान हर तीसरे दिन अंडे देती हैं, आमतौर पर यह लगभग 100 से 300 तक अंडे देती हैं, विभिन्न प्रजाति अंडों को आसपास के व्यवस्था के अनुसार रखती है, जिसमे से कई मच्छर अपने अण्डे को पानी के आसपास रखते है, या उन स्थानों में रखते हैं, जहां बाढ़ या बारिश के बाद में पानी एकत्र हुआ होता है, कुछ प्रजातियां अपने अंडे पेड़ के छेदों में या पानी के छोटे संग्रह में या छोटे तालाबों में तथा खोखले कंटेनर जैसे बाल्टी व वाहन के खाली टायर में रखती हैं| विशेष प्रजाति के आधार पर मच्छर अपने अण्डे को व्यक्तिगत रूप से या बेड़ा (राफ्ट) में रखते हैं, बेड़ा नियमित रूप से बाढ़ वाले क्षेत्रों में पानी की सतह पर या जमीन पर तैरती है| मच्छर एक इंच पानी में भी अंडे दे सकते हैं|

मादा मच्छर के द्वारा पानी कि सतह पर रखा गया अंडों का समूह

भिन्न प्रजातियों के अण्डे का रंग भिन्न भिन्न होता है, मादा मच्छर अंडो को विकसित करने और अंडे को पोषण देने के लिए पोषक (host) से रक्त को सूंड के माध्यम से निकालती हैं| अधिकांश अण्डे इसी अवस्था में विभिन्न वातावरणीय परिवर्तन व शिकारियों तथा अन्य कारणों से नष्ट हो जाते है| अंडे लगभग 24 से 48 घंटों के भीतर लार्वा में परिवर्तित हो जाते है|

2.मच्छर का जीवन चक्र का द्वितीय अवस्था :- लार्वा (wriggler)

अण्डे लार्वा में परिवर्तित हो जाते है, जिसे व्रिगलर (wriggler) कहा जाता है, यह बहुत सक्रिय होते है| अधिकांश प्रजातियों के लार्वा पानी की सतह से नीचे होते हैं, तथा लार्वा में सांस लेने के लिए (साइफन) वायु नली पाया जाता है, जो उसके पीछे के हिस्से से पानी की सतह तक फैला होता है| जो पानी में तैरने में भी मदद करता है| यह पानी की सतह पर पाये जाने वाले जलीय सूक्ष्मजीवों से पोषण प्राप्त करता है| लार्वा जल्द ही लंबाई में लगभग 5 मिमी तक बड़े हो जाते है, बड़े हुए लार्वा को जल की सतह के ठीक ऊपर तैरते हुए देखा जा सकता है| लार्वा के इस चरण का अवधिकाल लगभग 4 से 14 दिनों तक होता है, तथा विभिन्न प्रजातियों में यह अवधि पानी के तापमान और भोजन की उपलब्धता के साथ बदलता रहता है| लार्वा आमतौर पर पानी के बिना जीवित नहीं रह सकते यदि पानी का स्रोत लार्वा के विकसित होने से पहले वाष्पित हो जाते है, तो यह मर जाते हैं|

लार्वा पानी में रहते हैं, और सूक्ष्म कार्बनिक कणों को ग्रहण करते हैं, जिसे वे अपने मुंह के चारों ओर ब्रश जैसी संरचनाओं के माध्यम से पानी को फ़िल्टर करते हैं, व पानी में उपस्थित सूक्ष्म जीवो को ग्रहण करते है, कुछ बड़ी प्रजातियों के लार्वा छोटे मच्छरों के लार्वा सहित अन्य छोटे कीड़े को भी खाते हैं|

पानी की सतह के नीचे साइफन कि मदद से तैरते हुए लार्वा

मच्छर के लार्वा में एक अच्छी तरह से विकसित सिर होता है, जिसमें जल में पाये जाने वाले जलीय सूक्ष्मजीवों को छानने के लिए उपयोग किए जाने वाले मुँह के चारों ओर माउथ ब्रश होते हैं| लार्वा में एक बड़ा वक्ष होता है, इसका उदर खण्डो में बटा हुआ होता है, लार्वा के आठवें उदर खंडों पर साइफन स्थित होता हैं| लार्वा अपना अधिकांश समय सतह के सूक्ष्मजीवों को खाने में बिताते हैं, जिसके बाद वे प्यूपा में रूपांतरित हो जाते हैं|

3.मच्छर का जीवन चक्र का तृतीय अवस्था :- प्यूपा (pupa)

यह शारीरिक रूप से लार्वा कि तुलना में कम सक्रिय हैं, और गहरे पानी से बचने के लिए एक रोलिंग या टम्बलिंग क्रिया को नियोजित करते हैं, यही कारण है कि उन्हें आमतौर पर टम्बलर (tumbler) कहा जाता है, यह चरण लगभग 1.5 से 4 दिनों तक रहता है|

रोलिंग क्रिया करते हुए व आंशिक रूप से कोकून से घिरा हुआ प्यूपा

प्यूपा आंशिक रूप से यह कोकून में घिरे हुए होते हैं| प्यूपा विकसित होने के दौरान पोषण ग्रहण नहीं करता है, लेकिन लार्वा की तरह वायु नली (साइफन) के माध्यम से सांस लेता है| कुछ दिनों बाद तापमान व अन्य परिस्थितियों के आधार पर इसके सेफलोथोरैक्स की पृष्ठीय सतह (त्वचा पीछे की ओर का भाग) विभाजित हो जाती है, यह भी लार्वा कि भांति बिना पानी के जीवित नहीं रहा सकते तथा बिना पानी के मर जाते है|

4.मच्छर का जीवन चक्र का चतुर्थ अवस्था :- वयस्क (adult)

एक बार जब अंडे पूरी तरह से विकसित हो जाते है, तो मादा उन्हें छोड़ देती है, और पोषक (host) की तलाश शुरू कर देती है|विकसित हुए वयस्क पानी से बाहर निकलते है, और अपने शरीर के सूखने का इंतजार करते है, उसके बाद यह आसानी से उड़ सकते है|

वयस्क मच्छर की लंबाई आमतौर पर 3 मिमी से 6 मिमी के बीच होती है, सबसे छोटे ज्ञात मच्छर लगभग 2 मिमी (0.1 इंच), और सबसे बड़े लगभग 19 मिमी (0.7 इंच) है| मच्छरों का वजन लगभग 5 मिलीग्राम होता है|सभी मच्छरों के शरीर में तीन खंड में बटे होते हैं:-सिर,वक्ष और उदर

मादा मच्छर द्वारा शुंड के माध्यम से पोषक (host) से रक्त का सेवन करती हुई

नर मच्छरों की पहचान उनके एंटीना द्वारा की जा सकती है|

मच्छरों का जीवन काल तापमान,आर्द्रता,पोषक (host) कि उपलब्धता,सुरक्षा,तथा शिकारियों से बचने के दौरान सफलतापूर्वक रक्त भोजन प्राप्त करने की उनकी क्षमता पर निर्भर करते है| आमतौर पर नर मच्छर का औसत जीवन काल लगभग 6 से 7 दिन होता है, तथा मादा का जीवन अवधि लगभग 6 सप्ताह है|

अंडे से वयस्क तक के विकास की समय प्रजातियों में भिन्न होती है, तथा परिवेश के तापमान से प्रभावित होती है| मच्छरों की कुछ प्रजातियां अंडे से वयस्क तक कुछ दिनों में विकसित हो जाती है, लेकिन कुछ प्रजाति को उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के कारण विकसित होने में अधिक समय लगता है, वयस्क मच्छरों के शरीर के आकार की भिन्नता लार्वा आबादी के घनत्व और प्रजनन तथा पानी के भीतर भोजन की आपूर्ति पर निर्भर करती है|

मादा मच्छर अपने अंडों को पोषण देने तथा विकसित करने के लिए आमतौर पर पोषक के रक्त पर निर्भर करती है| केवल मादा मच्छर ही रक्त का भक्षण करती है, तथा नर मच्छर विशेष रूप से शाकाहारी होते है, जो अपने पोषण केवल पेड़-पौधे व उसके फलो के रस पर निर्भर रहते है|

मच्छर अपने पोषक को कार्बन डाइऑक्साइड और उनके द्वारा उत्पादित तापमान तथा अन्य रसायनों के द्वारा पता लगाती है|मच्छर कार्बन डाइऑक्साइड एमिनो एसिड और ऑक्टेनॉल सहित कई रसायनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है| मादा मच्छर की औसत उड़ान की सीमा लगभग 1 से 10 मील के बीच होती है, लेकिन कुछ प्रजातियां रक्त भोजन लेने से पहले 40 मील तक की यात्रा कर सकती है|

• मच्छरों के व्यवहार:-

मच्छर कि विभिन्न प्रजातियां पायी जाती है, जिसमे से कई ऐसे प्रजाति है जो बहुत ही घातक बीमारियों के लिए जिम्मेदार होती है, मच्छर स्वयं बीमारियों पैदा नहीं करता बल्कि एक वाहक के रूप में कार्य करता है, बीमारियों को फैलाने के लिए मुख्य रूप से मादा मच्छर जिम्मेदार होती है|

मच्छरों के विभिन्न प्रजाति के द्वारा विभिन्न रोग जैसे :- डेंगू,मलेरिया,पीला बुखार आदि रोग हो सकते है, जो बहुत ही घातक होते है,

कुछ प्रजातियों के मच्छरों के लार में बीमारियों फैलाने वाले सूक्ष्म जीव उपस्थित होते है, जो स्वस्थ व्यक्ति को काटने के दौरान उसके रक्त में प्रवेश कराया जाता है, इसीलिए केवल कुछ बीमारियों को ही फैलाया जा सकता है, जैसे कि मलेरिया या पीला बुखार क्योंकि वे मच्छर के अंदर रहने और उसकी लार में फैलने के लिए विकसित हुए है|

• मच्छरों को कैसे नियंत्रित किया जाये?

मच्छर के काटने को कैसे रोक सकते हैं? यह आमतौर पर मुख्य प्रश्न है, लेकिन मच्छर के काटने को पूरी तरह से नहीं रोक सकते है, लेकिन काटने की संभावना कम कर तथा उससे बचाव जरूर कर सकते है| मच्छरों को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है, कि उसके शुरू के तीन चरण (अण्ड,लार्वा,प्यूपा) को नष्ट किया जाये जिससे यह परिपक्व न हो सके|

यहां पर कुछ सुझाव दिए गये है, जो मच्छरों को रोकने के लिए उपयोगी साबित हो सकते है :-

  1. मच्छर पानी में प्रजनन करते हैं, इसलिए अपने घर के आस-पास पानी को गड्ढों में एकत्रित नहीं होने दे,तथा ऐसे वस्तु को बाहर रखने से बचे जिसमे जल एकत्रित होने कि संभावना हो|
  2. अपने घर के पास घास और वनस्पति को अच्छी तरह से छंटनी करना भी महत्वपूर्ण होता है|
  3. मच्छरों को खाने वाली मछलियाँ,अपरिपक्व मच्छरों के लिए एक महत्वपूर्ण नियंत्रण कारक है, यह लार्वा तथा उसके अंडों को खा जाती है|
  4. लार्वा को मारने के लिए सबसे आसान है,कुछ तेलों (केरोसिन) का उपयोग करना चाहिए जिससे लार्वा नष्ट हो जाये|
  5. डीडीटी का उपयोग करके भी मच्छरों को नियंत्रित किया जा सकता है, दुनिया भर में बड़े क्षेत्र के मच्छरों के नियंत्रण के लिए किया जाता था, लेकिन अब इसे अधिकांश विकसित देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है|
  6. भारत में वयस्क मच्छरों को नियंत्रित करने के लिए, वैन माउंटेड फॉगिंग मशीन और हैंड फॉगिंग मशीनों का उपयोग किया जाता है|

उम्मीद है कि आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा| मच्छर का जीवन चक्र,आवास व उनके व्यवहार के साथ साथ मच्छरों को नियंत्रित कैसे किया जा सकता है, इससे संबधित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुआ होगा|

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